जीवन को तुम जितना समझोगे, उतना ही पाओगे तुम कि तुम कर्ता नहीं हो, घटनाएं घट रही हैं; हैप्पनिंग्स हैं। प्रेम उतरता है, हो जाता है। इसलिए तो बड़ी मुसीबत है प्रेम के साथ। लोग समझाते हैं किसी को कि तुम पति हो, चार बच्चे हैं, पत्नी है, तुम किस पागलपन में पड़े हो? पति को भी समझ में आता है। बात सीधी है, साफ है: चार बच्चे हैं, पत्नी है—और किसी के प्रेम में पड़ गए हो, नासमझ हो। होश सम्हालो। पति भी होश सम्हालने की कोशिश करता है। लेकिन वह कहता है कि क्या करूं, हो गया! वह यह भी समझता है कि कुछ गलत हो रहा है, फिर भी रोक नहीं सकता। वह यह भी जानता है कि न होता तो अच्छा था। अपने बच्चों और पत्नी का खयाल भी आता है, लेकिन कर भी क्या सकता है! घटना घट गई! जिम्मेवार हम उसे ठहराते जरूर हैं, लेकिन वह भ्रांति है।
प्रेम की घटना आदमी के हाथ के बाहर है। जब तक कि तुम बुद्धत्व को उपलब्ध न हो जाओ, तब तक तुम्हारे हाथ के बाहर है। और जब तुम बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाते हो, तब एक दूसरा ही आयाम प्रेम का खुलता है। तब तुम किसी के प्रेम में नहीं पड़ते, तुम प्रेम हो जाते हो। तब तुमसे प्रेम मिलता है, बंटता है, बिखरता है; लेकिन तुम किसी के प्रेम में नहीं गिरते। तुम उस दीए की भांति हो जाते हो जो जल रहा है; रास्ते से जो भी निकलता है, उसको भी उसका प्रकाश मिल जाता है। तुम उस फूल की तरह हो जाते हो, जो खिल गया है; उसकी सुगंध, जो भी राहगीर होता है, उसको मिल जाती है। लेकिन अब तुम्हारा तुम पुराना प्रेम नहीं है—जबकि तुम अवश गिर जाते थे; जब कि तुम अपन को परवश समझते थे, जबकि तुम्हें लगता था, अब क्या कर सकता हूं! समझते थे, बूझते थे; बुद्धि कहती थी, ठीक है।
बुद्धि के अपने तर्क हैं, लेकिन हृदय उनको मानता नहीं। तुम दबा भी ले सकते हो, द्वार बंद कर दे सकते हो; बुद्धि की मानकर प्रेम की तरफ न भी जाओ—तो भी हृदय किसी और के लिए धड़कता है, उसी के लिए धड़कता रहेगा। तुम पत्नी की फिकर करोगे, पैर दबाओगे। बीमारी में चिंता करोगे, आलिंगन करोगे—लेकिन तुम पाओगे, सब झूठा है; सब बुद्धि से कर रहे हैं।
कर्ता तुम हो कहां? न श्वास तुम्हारी अपनी, न प्रेम तुम्हारा अपना, न जीवन तुम्हारा अपना। इसी के कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है कि निमित्त—मात्र हो जा। तू यह छोड़ ही दे खयाल कि तू कर्ता है। ये जो सामने खड़े हुए योद्धा हैं, ये मेरे लिए तो मर ही चुके हैं। तू तो सिर्फ निमित्त है। तू सिर्फ धक्का देगा, ये मुर्दे की तरह खड़े हैं और गिर जाएंगे। ये मर ही चुके हैं। इनका मरना निश्चित है। तू नहीं करेगा यह काम कोई और करेगा। ये मरेंगे। कौन मारता है, यह बात गौण है।
जीवन अगर निमित्त है, खयाल में आ जाए…। निमित्त शब्द बड़ा बहुमूल्य है। इस शब्द के मुकाबले दुनिया की किसी भाषा में शब्द खोना मुश्किल है। निमित्त पूरब का, हिंदुओं का अपना शब्द है। और बड़ा गहरा है। निमित्त का अर्थ है कि मैं कारण नहीं हूं, न कर्ता हूं—मैं तो सिर्फ बहाना हूं। मेरे बहाने हो गया! मेरे बहाने न होता तो किसी और के बहाने होता। जो होना है वह होता। बहाने कोई भी होते। खूटियां कोई भी होतीं, जो टंगना है, वह टंगता; ;जो घटना है, वह घटता मैं इसमें, बीच में अपने अहंकार को न लाऊं। – OSHO
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Rajesh Ramdev Ram
Film Writer-Director, Kathak Dancer, Osho Sannyasin, Blockchain Enthusiast, Cryptos Investor, Founder - www.iamrrr.com